2025 के साहित्य नोबेल पुरस्कार का विश्लेषण – लास्ज़लो क्रास्नाहोरकाई और ‘सर्वनाश’ की कला

हंगरी के लेखक लास्ज़लो क्रास्नाहोरकाई को 2025 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया जाना, सिर्फ एक लेखक को सम्मान नहीं है, बल्कि वैश्विक उथल-पुथल के इस दौर में कला और साहित्य की भूमिका पर एक गहरा बौद्धिक बयान है। एक ऐसे लेखक, जिसे “सर्वनाश का स्वामी” कहा जाता है, का चुना जाना बताता है कि नोबेल समिति उस साहित्य को प्रतिष्ठित कर रही है जो दुनिया की बेरहमी और अराजकता को सीधे देखने का साहस दिखाता है।

1. ‘सर्वनाश’ का दर्शन: वर्तमान में डूबा हुआ अंधकार

  • क्रास्नाहोरकाई की मूल भावना यह है कि “सर्वनाश अभी हो रहा है।” उनके अनुसार, नरक और स्वर्ग दोनों इसी पृथ्वी पर मौजूद हैं। उनकी रचनाएँ, जो ठंडे युद्ध के दबाव और हंगरी में साम्यवाद के पतन के बाद के हालात से उपजी हैं, आज की दुनिया में भी प्रासंगिक लगती हैं। चाहे वह जलवायु परिवर्तन का संकट हो, या दुनिया भर में छिड़ी हुई लड़ाइयाँ, उनका साहित्य इसी ‘चल रहे सर्वनाश’ का दस्तावेज़ है।

2. शैली और विषय-वस्तु का गहरा रिश्ता

  • लंबे, टूटते-बनते वाक्य: क्रास्नाहोरकाई की पहचान उनकी पन्नों लंबी, बिना विराम के चलने वाली वाक्य रचना है। यह कोई स्टाइल का चमत्कार भर नहीं है। यह शैली उनकी विषय-वस्तु को दर्शाने का एक ज़रिया है। ये वाक्य पाठक को एक ऐसे जाल में फँसा देते हैं, जहाँ से निकलना मुश्किल है – ठीक वैसे ही जैसे उनके पात्र व्यवस्था, भ्रष्टाचार और निराशा के जाल में फँसे होते हैं। यह एक “धीमी लावा प्रवाह” की तरह है जो सब कुछ अपने रास्ते में ढक लेता है।
  • आशा की समाप्ति: उनकी महत्वपूर्ण कृति सैटनटैंगो इसका बेहतरीन उदाहरण है। एक सामूहिक खेत के गरीब लोग एक चमत्कार का इंतज़ार करते हैं जो कभी नहीं आता। उपन्यास की शुरुआत ही काफ्का के इस कथन से होती है – ‘ऐसा होगा तो, मैं उस चीज़ का इंतज़ार करते-करते ही उसे खो दूंगा।’ यह पूरी मानवीय आशा और व्यवस्था पर एक करारी आलोचना है।

3. समकालीन दुनिया से सीधा संवाद

  • नोबेल समिति का संदेश: दुनिया जब “दो युद्धों” जैसी स्थितियों से गुज़र रही है, तब क्रास्नाहोरकाई जैसे “गंभीर लेकिन नवप्रवर्तनकारी” साहित्य को चुनना एक स्पष्ट संदेश है। यह संदेश है कि साहित्य का काम केवल मनोरंजन करना नहीं, बल्कि दुनिया की अर्थहीनता को समझने और उसका सामना करने की ताकत देना है।
  • कला का उद्देश्य: लेखक स्वयं मानते हैं कि “कला, मानवता का उस ‘खोएपन’ की भावना के प्रति असाधारण प्रतिक्रिया है।” नोबेल पुरस्कार इसी विचार को मान्यता दे रहा है। यह मानवीय अनुभव के उस गहरे, कठिन और अंधेरे हिस्से का सम्मान है, जिसे समझे बिना हमारा अस्तित्व अधूरा है।

निष्कर्ष:
लास्ज़लो क्रास्नाहोरकाई का नोबेल पुरस्कार जीतना इस बात का प्रमाण है कि साहित्य अब भी दुनिया को देखने और समझने का एक शक्तिशाली माध्यम है। यह पुरस्कार उस कला का जश्न मनाता है जो हमें सुखद अंत का झूठा सपना नहीं दिखाती, बल्कि हमारे समय की जटिलताओं और डर का सामना करने की हिम्मत देती है।