भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) का 2023 का वार्षिक रिपोर्ट सिर्फ आँकड़ों का संग्रह नहीं है, बल्कि देश में बदलते सामाजिक और अपराधिक परिदृश्य का एक आईना है। इस रिपोर्ट को समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि राज्यों के बीच सीधी तुलना मुश्किल है, क्योंकि अपराधों के दर्ज होने की दर अलग-अलग है। फिर भी, कुछ रुझान इतने स्पष्ट और चौंकाने वाले हैं कि वे राष्ट्रीय नीति में हस्तक्षेप की माँग करते हैं।
1. साइबर अपराध: एक नए युग की चुनौती
- बढ़त का आकार: साइबर अपराधों में 31.2% की भारी वृद्धि सबसे चिंताजनक आँकड़ा है। यह कोई अचानक वाली बढ़त नहीं, बल्कि एक स्थायी रुझान है जो भारत की तेज़ डिजिटल पहुँच का एक अंधेरा पक्ष है।
- अपराधों की प्रकृति: यह वृद्धि मुख्यतः वित्तीय धोखाधड़ी (फिशिंग, UPI स्कैम) और ऑनलाइन यौन शोषण से जुड़ी हुई है। डिजिटल लेनदेन और निवेश के बढ़ते चलन ने अपराधियों के लिए नए अवसर पैदा कर दिए हैं।
- पुलिस की सीमाएँ: हालाँकि पुलिस ने विशेष साइबर सेल बनाकर इस चुनौती का सामना करने की कोशिश की है, लेकिन अपराध का “सर्वव्यापक” स्वरूप स्पष्ट करता है कि पारंपरिक पुलिसिंग इससे पीछे है। इससे निपटने के लिए अत्याधुनिक तकनीक, विशेषज्ञ जनशक्ति और जन-जागरूकता की बड़े पैमाने पर ज़रूरत है।
2. अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध: गहराती सामाजिक खाई
- राष्ट्रीय आँकड़े पर मणिपुर का प्रभाव: ST के खिलाफ अपराधों में 28.8% की चौंकाने वाली वृद्धि पूरी तस्वीर नहीं दिखाती। यह वृद्धि काफी हद तक मणिपुर की जातीय हिंसा का सीधा नतीजा है, जहाँ केसों की संख्या 2022 के एक मामले से बढ़कर 2023 में 3,399 हो गई। यह एक ऐसी त्रासदी है जिसे प्रभावी शासन और शांति स्थापना के ज़रिए कम किया जा सकता था।
- देश के अन्य हिस्सों में स्थिति: मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में लगातार ऊँचे अपराध दर इस बात का संकेत हैं कि आदिवासी समुदाय देश के हृदयस्थल में भी हाशिए पर और असुरक्षित हैं। यह एक नया मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार और संसाधनों पर विवाद का एक पुराना लेकिन लगातार बढ़ता हुआ लक्षण है।
3. बच्चों और महिलाओं के खिलाफ अपराध: चिंता के अन्य पहलू
- बच्चों की सुरक्षा का संकट: बच्चों के खिलाफ अपराधों में 9.2% की वृद्धि और 96% मामलों में परिचित लोगों का दोषी होना, एक डरावनी वास्तविकता की ओर इशारा करता है। खतरा अक्सर बच्चों के अपने घर और विश्वसनीय लोगों के चक्र में छिपा होता है। इससे निपटने के लिए सिर्फ कानून ही नहीं, बल्कि बच्चों को सुरक्षा के गुर सिखाने और समाज में संवेदनशीलता बढ़ाने की ज़रूरत है।
- महिलाओं के खिलाफ अपराध: महिलाओं के खिलाफ कुल मिलाकर अपराधों में मामूली वृद्धि (0.4%) एक भ्रम पैदा कर सकती है। लेकिन दहेज से जुड़े अपराधों में 14.9% की तेज़ बढ़त दिखाती है कि हमारे समाज की एक गहरी बीमारी अब भी जस की तस बनी हुई है। आधुनिकता के बावजूद दहेज जैसी कुरीतियाँ जड़ जमाए हुई हैं।
निष्कर्ष:
2023 का एनसीआरबी डेटा हमें चेतावनी देता है कि भारत के सामने अपराध की दोहरी चुनौती है। एक ओर जहाँ एक नया, तकनीक-आधारित साइबर खतरा तेज़ी से बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर पुरानी सामाजिक विषमताएँ और हिंसा (खासकर वंचित तबलों के खिलाफ) बनी हुई है। सरकार और समाज को इन दोनों मोर्चों पर एक साथ लड़ने की ज़रूरत है।