स्रोत: द हिंदू संपादकीय (छात्रों की समझ के लिए अनुकूलित)
मूल शीर्षक: “Testing governance: On the Sawalkote Hydroelectric Project“
तारीख: 14 अक्टूबर, 2025
परिचय: दोहरे महत्व वाली परियोजना
चिनाब नदी पर प्रस्तावित 1.8-गीगावॉट की सावलकोट जलविद्युत परियोजना को हाल में मिली नई गति भारत के शासन की एक crucial परीक्षा बन गई है। द हिंदू के विश्लेषण के अनुसार, यह परियोजना राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के जटिल मेल-जोल पर खड़ी है। पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल संधि (IWT) के निलंबन के मद्देनजर इसका timing इसे एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक प्रतीकात्मकता प्रदान करता है।
रणनीतिक तर्क: अभी क्यों?
केंद्रीय बिजली और गृह मंत्रालय इस परियोजना के लिए जोर दे रहे हैं, जिसके पीछे कई कारण हैं:
- भू-राजनीतिक संकेत: यह परियोजना IWT के निलंबन के बाद पश्चिमी नदियों (चिनाब, झेलम, सिंधु) पर भारत के अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने के इरादे को दर्शाती है।
- प्रक्रियात्मक स्वतंत्रता: संधि को निलंबित रखने से अंतरराष्ट्रीय प्रक्रियात्मक बाधाएं दूर हुई हैं, जिससे सावलकोट जैसी परियोजनाएं तेजी से आगे बढ़ सकती हैं।
- रणनीतिक स्वायत्तता: यह पाकिस्तान की ओर से सुरक्षा चिंताओं के जवाब में भारत के अपने जल अधिकारों के दावे का प्रतिनिधित्व करती है।
पर्यावरणीय और कार्यान्वयन संबंधी चिंताएं
हालांकि, द हिंदू कई गंभीर चिंताओं की ओर इशारा करता है जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता:
- संचयी प्रभाव: चिनाब पर पहले से ही कई परियोजनाएं (दुलहस्ती, बगलीहार, सलाल) “bumper-to-bumper” व्यवस्था में मौजूद हैं। एक और बड़ी परियोजना जोड़ने से sediment load और slope instability के बढ़ने का खतरा है।
- भ्रामक वर्गीकरण: हालांकि इसे “run-of-the-river” परियोजना कहा जाता है, यह 50,000 करोड़ लीटर की एक विशाल जलाशय बनाएगी, जो वास्तव में एक storage dam की तरह काम करेगी।
- कार्यान्वयन जोखिम: NHPC के track record में अक्सर देरी और लागत बढ़ने के मामले देखे गए हैं। परियोजना की लागत पहले ही ₹9,000 करोड़ बढ़ चुकी है।
- अपर्याप्त पुनर्वास: 1,500 विस्थापित परिवारों और 847 हेक्टेयर वन भूमि के पुनर्वास के लिए कुल व्यय का केवल 0.6% हिस्सा आवंटित किया गया है।
बड़ी तस्वीर: दीर्घकालिक प्रभाव
संपादकीय भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाता है:
- एकतरफा कार्रवाई करके, भारत एक संधि-पालन करने वाले राष्ट्र के रूप में अपनी विश्वसनीयता को जोखिम में डाल सकता है
- पाकिस्तान पहले ही IWT निलंबन की वैधता को चुनौती दे चुका है
- भविष्य की वार्ताओं में अवांछित तीसरे पक्ष की जांच का सामना करना पड़ सकता है
- रणनीतिक दावे को पारिस्थितिक जिम्मेदारी के साथ संतुलित करना होगा
निष्कर्ष: आगे का रास्ता
द हिंदू का सुझाव है कि सच्ची रणनीतिक सूझ-बूझ सुरक्षा जरूरतों और पर्यावरणीय देखभाल के बीच संतुलन बनाने में निहित है। भारत को चाहिए:
- उचित क्षेत्रीय पर्यावरणीय अध्ययन करें
- sediment management protocols स्थापित करें
- बहुपक्षीय platforms के माध्यम से डेटा पारदर्शिता को संस्थागत बनाएं
- hydrological monitoring को सुरक्षा जोखिम से एक confidence-building measure में बदलें
अंतिम परीक्षा यह होगी कि क्या भारत यह पहचान पाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और पारिस्थितिक जिम्मेदारी विरोधी शक्तियां नहीं बल्कि पूरक सिद्धांत हैं जिन्हें सतत विकास के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
मुख्य बातें:
- जटिल निर्णय लेने की प्रक्रिया: बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में रणनीतिक, पर्यावरणीय और सामाजिक विचारों को संतुलित करना शामिल है
- अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी: हमारी interconnected दुनिया में एकतरफा कार्रवाइयों के राजनयिक परिणाम होते हैं
- सतत विकास: सच्ची सुरक्षा तात्कालिक रणनीतिक लाभों को दीर्घकालिक पर्यावरणीय स्थिरता के साथ संतुलित करने से आती है